स्निग्ध,सुरम्य नन्दन बन
भोर बेला के द्रिश्य दर्पण
रुपसी, सुन्दरी, मनोरम
मोहिनी,माधुरी,अकिञ्चन।
सघन हरियालीके मादकता
सौन्दर्यताके कौमार्य छटा
चपल पल्लवीके अल्हड़ता
पुष्पिकाके मोहक चपलता !
मध्दिम बयारकी गीत गुंजन
कानोंमे मिसरी सा घूले क्षण
छूइमुई के ख्वाब कञ्चन
आलिंगनके अद्रिश्य बंधन !
पक्षियों के चहचहाते गीत
रागिनी छटा मे आप्लावित
नशीले सुर ताल करे मोहित
मन मोहे जैसे पियाके प्रीत !
सुष्मिता,शर्मिष्ठा शर्म मर्मरी
खूल जा समसम के जादूगरी
प्रक्रिति के गोदमे मायानगरी
जंगलके एक सूबह,नन्ही परी।
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