*****थाली में चाँद परोस देती हूँ *******
(First post)
सूरज की किरणें भी उधार मुझे मिलती नहीं
मुठ्ठी भर जुगनुओं से घर रोशन कर देती हूँ
लहू सूखा, सीने से दूध भी अब उतरता नहीं
बच्चे आ तेरी थाली में मैं चाँद परोस देती हूँ
माँ हूँ आ तेरी थाली में मैं चाँद परोस देती हूँ……….
पलकों में बहता था जो दरिया अब सुख चुका
सफिने मेरे मुट्ठी भर ख्वाहिशों के चलेंगे कहाँ
दौर ए मुफलिसी में भले ना हो कोई आशियाना
मीलों लंबी छत मिली फलक की रहेंगे हम वहां
माँ हूँ आ तेरी थाली में मैं चाँद परोस देती हूँ………
मयस्सर नहीं छांव भले मुझे, मेरा दामन फटा सही
बच्चे आ तुझे छांव मैं अपने आंचल की कर देती हूँ
ज़िन्दगी हर रोज़ गढ़ती है बेबसी की एक नई कहानी
उस कहानी में ज़रा सी रोशनी उम्मीद की भर देती हूँ
माँ हूँ आ तेरी थाली में मैं चाँद परोस देती हूं……….
हिना शाइस्ता✍️
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
7 Comments on “हिंदी काव्य प्रतियोगिता ubi”
Bahut khoob
Thanks dear❤️
बहुत ही सुन्दर
शानदार सृजन वेहतरीन रचना वाह वाह
सुन्दर 👌👌👌👌👌
Bahut khubsurat likha 👏👏💐💐
Bahut khoob