सपनों की ऊँची उड़ान
रंगीन मनभावन उड़ान
बिना इसके मन उदास ग़मगी़न
जीवन लगता उजाड़ वीरान
वो जीना भी क्या यारों ?
जिसमें सतरंगी सपने न हों
ज़िंदगी सूखा मरु,श्मशान हो
रुक-२ कर,चल, ठहर जाती हो
हमने सपने देखे गर दिन में
सोने न दें हमें वे रात भर
चलो राह बनायें समतल
पंख को परवाज़ दे सपन पूरा करने को
सपनों की उड़ान बड़ी संगीन होती है
किसी को ख़ुशहाल किसी को ग़मग़ीन बनाती है
दोस्तों सपनों की उड़ान भरो ज़रूर
पर उसे पूरा करने का जतन भी करो ज़रूर
(स्वरचित- मौलिक)
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.
3 Comments on “रीता बधवार (UBI सपनों की उड़ान प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र )”
Very expressive and touching poem
अति सुंदर … कुछ पंक्तियों में इतनी ऊँची उड़ान लेना एवं उनको इतनी सुंदर तरीक़े से सजना रीताजी … आप से सीखना होगा। 👏👏👏
Very nice