‘रिमझिम बूंदें_’__
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सावन की छाई मनभावनी बहार सखी
रिमझिम बूंदों की फुहार,
तृषित धरा को तृप्त कर ,करती
नव जीवन नवचेतना का संचार
रिमझिम बूंदों की बहार, सुनाती राग मल्हार,
अंबर में उमड़ते _ धुमड़ते गरजते काले बादलों की ताल पर थिरकती दामिनी कर सोलह श्रृंगार
रिमझिम बूंदों—–
बूंदें, सृजनकारी
नवपल्लव,नव किसलय मुखरित हो
मधुबन की शोभा बढ़ा रहे
धरती लजाती
धानी चुनर ओढ़ संजोती सपने हज़ार
रिमझिम बूंदों——
चल रही ठंडी-ठंडी, सीली -सीली पुरवाई बयार
गूंज उठी चहुंओर कोयल , दादुर पपीहे की पुकार,
युगल प्रेमियों को जला रही
मिलन की आस जगा,प्रणय निवेदन की राह दिखा रहीं बूंदें
भीगा भीगा सा दिन मेघ ढकी रात
सबके भीगे मन भीगे- भीगे गात ,
मीठे दिन बरसात के ,खट्टी मीठी याद
त्योहारों की थाली सजा,
इंद्रधनुषी झूले में हम सबको झूला रहीं बूंदें
कजरी गाती फुहार
सावन की छायी बहार सखी