रूबरू होने का मौक़ा मिला
एक सुबह जंगल से
देख चिड़ियों की चहचहाहट
कोमल पत्तियों से छनती
सूर्य की किरने
जंगली नदी में
बहता निर्मल जल
कुलाँचे मारते
मदमस्त हिरण
शाख़ों पर
झूलते बंदर
साथ चलते हाथियों
के झुण्ड
काम में लगी सेही
भागते बिच्छू
कुंडली मार कर
बैठे साँप
बिलों से बाहर
झाँकते ख़रगोश
पंख फैला कर
नाचते मोर
माँस को नोचते
सियार
सतर्क बैठे शेर
ठंडे पथ्थर पर
ठहरी ओस
आपस में लड़ते
बारहसिंघे
सुगंधित बयार
एक दूसरे के
विपरीत परंतु
एक दूसरे के पूरक
मन विचलित
हो गया
इन्होंने कितना कुछ
सहेजा है
प्रकृति को जस का तस
और मानव
हमने भी तो खड़े किए
हैं कंक्रीट के जंगल
बोझिल सा मन
भर लाया भीतर
जंगल की एक सुबह
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