धोखा केवल एक शब्द नहीं है, यह एक कलंक है।क्योंकि धोखा नियति नहीं है धोखा चयन है।यह इन्टरनेट और सोशल मीडिया का जमाना है, सोशल मीडिया पर एक वायरल वाक्य है कि’वह बड़ा गरीब था कुछ ना दे सका तो धोखा ही दे दिया।’बिल्कुल सत्य है,क्योंकि धोखे का चयन वही व्यक्ति करता है जो चारित्रिक रुप से कमजोर होता है।धोखेबाज व्यक्ति वास्तव मे तो दुश्मन ही होता है परन्तु वह अवसरवादी तब तक दोस्त बना रहता है जबतक उसका लाभ आपकी दोस्ती से बड़ा ना हो जाए।इसलिए वह सहयोग और अपनेपन का मुखौटा लगाए रहता है।इस मुखौटे की आड़ मे कोई उसका असली चेहरा नहीं देख पाता है।उसका असली चेहरा तभी सामने आता है जब वह धोखा दे चुका होता है।तब तक वह सरल व सहज लोगों को अपनेपन का चेहरा दिखाकर ,विश्वास का भरोसा दिला कर विश्वासघात करता रहता है।एकतरफ जहाँ अपनापन धोखे का मुखौटा है वहीं विश्वास उसका सबसे बड़ा हथियार है।इस हथियार के सहारे ही धोखा दिया जाता है।अपना लोभ,अपनी महत्वाकांक्षा,अपनी सुविधाओं की पूर्ति किसी और के विश्वास की कीमत पर करने का छोटा रास्ता अपनाकर लोग किसी को भी धोखे का शिकार बना लेते हैं और कहा जाता है कि अनुभवहीन,सरल लोग धोखा खा जाते हैं।ज्यों ज्यों मानव ने सुख सुविधाओं के साधन जुटाए है,उसकी आरामतलबी की भूख और बढ़ती गयी है।आज के परिप्रेक्ष्य मे देखें तो’प्राण जाए पर वचन ना जाए’ उक्ति वाले लोग मूर्ख ही माने जाएंगे किन्तु ये वाक्य हमारी सभ्यता और संस्कृति को प्रतिबिंबित करता है।हमारी सभ्यता और संस्कृति सदैव उच्च आदर्शों को महत्व देती आयी है। ये हमें प्रेरित करती है कि हमें किसी भी क्षुद्रता से मोहित होकर अपने आदर्शों को नहीं छोड़ना चाहिए।कोई भी मीरजाफर या जयचंद तत्काल तुच्छ लाभ तो हासिल कर लेगा किन्तु सदियों धिक्कारा जायेगा ।इस मिथ्या जगत मे कुछ भी शाश्वत है तो वह यश है। प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी आत्मा को यश से पूरित करे।अतः धोखे का चयन की जगह हम अपने उच्च आदर्शों का चयन करेंगे तो यह धरती पहले से कहीं अधिक सुखद हो जायेगी।
भावना शर्मा
स्वरचित
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