बेरुखी के बादल जब उमड़ घुमड कर आते है
जज्बातों की बूंदों से मन को भीगो कर जाते हैं
भीग जाती है पलकें सब धुँआ सा लगता है इंद्रधनुषी रंगो को पाना सपना सा लगता है
खो जाती हूँ कई बार उन लम्हों उन यादों में
देखती हूँ कुछ सपनें मैं भी इंद्रधनुषी रंगो में
सोचती हूँ
क्यों आसमां आज यूँ इतरा रहा है
दिवा में काली घटा पर इठला रहा है
प्रेम की किरणों से रोशनी खूब जगमगाई है
इंद्रधनुषी रथ पर सवार बारात जैसे आयी है
देखती हूँ
इश्क़ के बादल को अपनी आगोश में लेकर
किरणों ने भी रंग बदला है उन बूंदों को छूकर
भरी बरसात में आतिशबाजी हुई हो जैसे
खुले आसमान में रंगों का मिलन हुआ कैसे
मुहोब्बत मैंने भी सातों रंगों से की थी
तमन्ना धूप की बरसते बादलों से की थी
सोचा था इन रंगो में खिल जाऊंगी
बदली बन आसमान में मिल जाऊंगी
न था मालूम कि सपने कभी सच न होंगे
इंद्रधनुषी ये रंग कभी अपने न होंगें
आँखों ने कल फिर झड़ी लगाई थी
कुछ और नही बात तेरी जुदाई थी
व्याकुल मन में फिर भी आस अभी बाकी है
वीराने में ‘इंद्रधनुषी’ सौगात अभी बाकी है।
7 Comments
Very nice
Bahut khoob
Kya bat
Excellent
Very nice.
💐 congratulatios Priti
Keep it up 🌟🌟
Very good
Superb👏🏻👏🏻👏🏻Well expressed
Very nice
वाह बहुत ख़ूब ।
अंतर्मन से हार्दिक बधाई….. अच्छे विचारों को कविता में पिरोने के लिए….!