क्या अजब ये हादसा है, इस जहाँ को क्या हुआ है,
दौर कैसा आ गया है, चल पड़ी कैसी हवा है !
आदमी ही आदमी को दे रहा धोखा यहां अब,
कर सकें जिसपे भरोसा, शख़्स ढूँढें वो कहाँ पर ,
हाथ में बंदूक सबके, गोलियाँ सब फैंकते हैं,
स्वार्थ के ख़ातिर सभी अपनी अड़ी ही ऐंठते हैं,
इस कदर धोखागिरि है, आदमी हर रो रहा है !
दौर कैसा आ गया है………………..
फल रहे धनवान देखो, हो रहा बर्बाद निर्धन,
दे रहे धोखा धनी, पर हो रहा आहात निर्धन,
ओढ़ कर मुख पर मुखौटा इक दिखावा कर रहे सब,
बोलकर मीठी सी वाणी, इक छलावा कर चलें सब,
हम कहें अपना जिसे, वो ही भरोसा खो रहा है,
दौर कैसा आ गया है………………..
बेरहम दुनिया हुई है, अब बची करुणा न जग में,
अब तनिक विश्वास भी, शायद रहा हमको न रब में,
कुछ समझ आता नहीं ये, क्या ख़ुदा का कायदा है,
सामने अपने वो क्या सब देखना ये चाहता है,
खुद रचा इंसान उसका, बीज कैसे बो रहा है,
दौर कैसा आ गया है……………..
डॉ सोनिया