“मन हीरा”
ये जीवन तो माया है
तू दो दिन को आया है
क्यों इस तन पे इतराए
ढल जानी ये काया है।
सोने चांदी के गहने
क्यों मोल खरीदें पहने
सब धरे यही रह जाए
क्या संग अपने लाया है
गढ़ना है तो मन गढ़ ले
बस ढाई आखर पढ़ ले
संस्कारों के गहनों में
व्यवहार के मनके जड़ ले
फिर जहां से जब जाएगा
कुछ नाम तो रह जाएगा
भई बंदा था ये हीरा
हर जुबां पे ये पाएगा
तो गांठ बांध मन पगले
तू आप को अपने गढ़ ले
और बन जा तू वो हीरा
जो चमके जन्म भी अगले
ये जीवन तो माया है….
– इरा
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