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अनामिका जोशी (2) ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )

सुधा जी! आज एक नए वृद्ध जोड़े का नामांकन हुआ है ,आप ही के शहर से हैं।
ठीक है! तुम पुस्तिका में औपचारिकताएं पूर्ण करो, मैं आती हूं।
हमारी मैडम बहुत अच्छी हैं, जब भी इनके वृद्धाश्रम में नए लोग आते हैं, उन्हें बड़े आदर से प्रवेश करवाती हैं। चलिए, नए मेहमानों के लिए व्यवस्था करते हैं।
अरे! यह क्या?? मां-बाबूजी आप?? सुधा स्मृतियों में खो गई ।यह वही सास-ससुर थे जिन्होंने सुधा को निसंतान होने के कारण बांझ कह कर घर से निकाल दिया था ।
पर भैया भाभी के दावे !! क्या हुआ उनका ?? ऐसा क्या हुआ होगा ?
‘हमें माफ कर दो बेटी !!
सासु मां की आवाज ने सुधा की तंद्रा तोड़ी।
‘हम समझने में भूल कर गए, पैसा व्यक्ति का स्थान नहीं ले सकता।’ तुमने सही कहा था -‘मेरा भी समय आएगा
क्योंकि समय एक जैसा नहीं रहता।

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