विधा : आलेख
*धन्यवाद २०१९*
अब तक लगभग हर नया साल बड़ी धूमधाम से मनाया। सच पूछो तो कहीं कचोटता रहा इस तरह पुराने को, जो अपने आखिरी दिन गिन रहा है, अनदेखा करके नए के स्वागत में जुट जाना!
पर अपनी इस छटपटाहट की परवाह ना करके, बेदर्द ज़माने दस्तूर में बहते हुए लकीर का फकीर बना रहा।
एक समझदार दोस्त सुझाव पर सोचा कि अपने दिल की कुछ बातें तुझसे कह दूं!
सच तो यह जब से तू आया हम हर पल साथ ही हैं पर तेरे होने का अहसास तो तभी हुआ जब कभी तुझे
तारीख में लिखना याद ना रहा!
अब मुझे तेरे साथ जिए कई पल स्मरण हो रहे हैं! बहुत कुछ ऐसा हुआ कि जिसकी मैंने कल्पना तक नहीं की थी! नाट्य अभिनय का रोमांचक अनुभव मिला और उसके साथ अभिनय की दुनिया संभावनाएं खुलती दीख पड़ना!
तभी घुटनों के सत्याग्रह ने सब अवरुद्ध सा हो जाना! इस अवरोध से उबर फिर लेखन और नाट्य प्रशिक्षण आरंभ होना! पर मां के गिरते स्वास्थ्य ने फिर से थमने को विवश कर देना!
कविताओं से नाता बना रहा! मां के देहावसान का मानसिक आघात का अनुभव तुम्हारी यादगार देन रही!
अनेक नए मित्र बने! पर सबसे ख़ास हैं वे जिन्हें मैं “दी” कह कर संबोधित करता हूं! वे मेरी मां की आयु की हैं और उनसे मित्रता तब पनपी जब मेरी मां का अंत निकट था! सुरुवात चैटिंग से हुई! अब लगभग रोज बात होती है! कुछ फेसबुक की आभासी दुनिया के मित्रों से सुखद मिलाप हुआ!
दर्शन शास्त्र के अध्ययन का आरंभ हुआ सकारात्मक बदलावों की संभावनाएं बनीं!
बहुत कुछ ऐसा भी हुआ जिसने मुझे तड़पाया, रुलाया बहुत कुछ सिखाया! कड़वी दवाइयों जैसे अनिवार्य अनुभव !
अभी तेरे तो दिन शेष हैं पर मेरा क्या पता? मेरा नम्र वादा है कि जितने भी दिन साथ हूं हर पल पूरी इमानदारी से जीऊंगा!
“धन्यवाद २०१९”!!
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