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ललिता वैतीश्वरन (विधा : कविता) (न्याय | सम्मान पत्र)

न्याय  की देवी  को कभी न  इतना लाचार देखा 

आँखों  पर बाँध  पट्टी उसने  सिर्फ अंधकार  देखा 

 

उसकी  तराज़ू में  तुलता गुण -अवगुण 

काँटे  को गलत  झुकते बार  बार देखा 

 

झूठ  का ही  बोल बाला  होता चला 

सत्यमेव  जयते को न होते  साकार देखा 

 

निर्भया , गुड़िया, दिशा  ने दे दी जीवन आहुति 

उनके  आत्मसम्मान  को होते तार  तार देखा 

 

पैदा  होते गये  हर रोज़ अन्याय  के राक्षस 

अबकी  बार न  जन्म लेता  कोई न्याय का  अवतार देखा 

 

बेचारगी , लाचारी , भुखमरी में  जीता है न्याय,नगमा

न्याय  का ही हर  रोज़ होते बलात्कार  देखा !!

 

©️ललिता वैतीश्वरन ‘नगमा’

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