नैया है सबकी, सब हैं खिवैया
ज़िम्मेदारी सबकी, सब हैं मुखिया
यार नहीं होते तो पतवार नहीं होती
पतवार नहीं होती तो मँझधार ले डूबोते
श्रम से भरा है जीवन, जीवन इक बगिया
काट-छाँट खाद डालो, महके तब बगिया
यार नहीं होते तो इतवार नहीं होते
इतवार नहीं होते तो थक-हार गए होते
यार की है यारी न्यारी, इसका न जोड़ कोई
संग-संग सदा चले, आ जाए मोड़ कोई
यार नहीं होते तो संवाद नहीं होते
संवाद नहीं होते तो बेज़ार हो के रोते
यार नहीं होते तो …
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1 Comments on “यार नहीं होते तो”
वाह!!बहुत ख़ूब यारों की यारी।ख़ूब है कविता आपकी प्यारी।