#UBI #Valentinesday
मैं लिखना चाहता हूँ ……….
मैं लिखना चाहता हूँ, तुम्हारे बारे में
मगर शब्द शब्दकोश से बाहर के होंगे।
हो सकता है मुझे गढ़ना पडे एक नई भाषा …………
अब मेरा हृदय सिर्फ एक सुर ही जानता है
क्योंकि उसने कभी ध्यान से तुम्हारी मीठी आवाज के सिवा कुछ सुना ही नहीं …….
मैं हमेशा बचता रहा हूँ समंदर के पास जाने से
मगर तुम्हारी आँखों के गहरेपन में डूबने से अपने को न बचा पाया ……………
दिन ढलने पर आसमान के सीने पर, मुझे तारों को देखने की अब ख्वाहिश नहीं है।
क्योंकि अब रोज देखता हूँ तुम्हारे सौन्दर्य में इन्हें टिमटिमाते हुए……….
मैंने जला दी है वो सारी किताबें, जिसमें लिखी थी जलपरियों की झूठी कहानियाँ
क्योंकि हकीकत में मुझे कई बार दिखती हो तुम ………………
अब मुझे रात में किसी अच्छे स्वप्न की तलाश नहीं है
क्योंकि मैं जानता हूँ लौट आओगी तुम रात ढलते-ढलते ……………
सुुबह होने पर पहले की तरह अब मैं खिलते हुए फूलों को नहीं देखना चाहता,
चहचहाते हुए पक्षी, खुशियाँ मनाती तितलियाँ और कोयल का संगीत भी मुझे अब देर तक नहीं लुभाता …
क्योंकि मेरे मानस पटल पर जीवंत है केवल तुम्हारी तस्वीर ………….
प्रकृति का कोई सौन्दर्य बाकी नहीं रहा जो मैं तुमसे न देख पाया
हर बात किसी जादुई शिल्पकार की तराशी हुई मूर्ति सी आ जाती हो तुम मेरे ज़हन में और मैं गहरे मौन में चला जाता हूँ ……………….
तुम्हारी पलकों का अनगिनत बार झपकना, तुम्हारी छरहरी काया,
शीशे सा रंग और नदियों सी चाल, रोकते है मेरे कदम किसी तीर्थ यात्रा पर जाने से ……………
डॉ मोहित शर्मा
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