Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

भार्गवी रविन्द्र (विधा : कविता) (फूल खिले हैं गुलशन गुलशन | सम्मान-पत्र)

अंबर से उतर आई धरा पर एक किरण
चमक उठा जगती का कण कण
नवोदित सूरज की लालिमा कर गई लाल गगन
हवा के पैरों में पायल की थिरकन
स्नेह सुधा से भीगे तन मन
मधुर प्रणय की बेला सजा गये सुंदर सपन
पात पात चमकता ओस कण
सोलह सिंगार किये वसुंधरा का समर्पण
सुगंधित शीतल बयार का आलिंगन
स्नेह दीप से प्रज्वलित दो नयन
भौंरों का गुंजन,अधरों पर चुंबन
शर्म से लाल हुआ दरपन
पनघट पर इठलाती डोलती पनिहारिन
ढोलकी की थाप पर करतीं नर्तन
दिशी दिशी कोयल की गुंजन
बंदनवार सजाए प्रकृति का मौन अभिनंदन
हर्षोल्लास से अतिरेक सरस जीवन
नदी की चंचल धारा का सागर से सौहार्द मिलन
देख छटा निराली मुदित हुआ सबका मन
महक उठा हर घर ,हर आँगन
नवरस सिंचित वसंत का आगमन
हर्षित ,शोभित ,सुवासित चमन-चमन
फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन!

सर्वाधिकार सुरक्षित(C)भार्गवी रविन्द्र

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

Leave a Comment

×

Hello!

Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com

× How can I help you?