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प्रीति पटवर्धन (UBI जंगल की एक सुबह प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र )

गुजरना हो तो गुजरो कुछ पल जंगल में
कभी निहारो खूबसूरती के मंजर जंगल में

किस तरह चहूँ ओर हरयाली जाल बिछाती है
हरी चुनरी ओढ़, वनों में पेड़ों को सजाती है

किस तरह नन्हीं चिडियाँ का गुजारा होता है
क्या नजारा होता है जब जंगल में सवेरा होता है

क्या होता होगा जब बस पेड़ ही पेड़ दिखें
कुछ न दिखे पर परिंदों में जिंदगी दिखे

वो नन्ही जान भी ख़ुशी से फूली न समाई होगी
जंगल में जब पहली बूंद बारिश की आयी होगी

ढूंढा होगा उसने जा कर, अपनी माँ को बताया होगा
क्या समाँ होगा जब पहली बार उसने पंख फैलाया होगा

कूदी होगी वो हर डाल पर हर एक पात पर
खिलखिलाई होगी माँ उसकी हर बात पर

कितना बेहतरीन ,रंगीन वो नज़ारा हुआ होगा
हरी डाल पर अचानक लाल पत्ता आया होगा

कोयल ने भी तो मधुर गान सुनाया होगा
मोर ने भी सुंदर पंखों से मन बहलाया होगा

अज्ञात दिशा से बादल उमड़ घुमड़ आते होंगे
बरस बरस जमीं पर अपनी जगह बनाते होंगे

कैसे करूँ जतन कब सपना ये साकार होगा
मैं आँखे खोलूँ और जंगल में मेरा सवेरा होगा।

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2 Comments on “प्रीति पटवर्धन (UBI जंगल की एक सुबह प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र )

  1. अपनी सरल भाषा के माध्यम से शब्दों में पिरोयी अपने मन की बात कह जाना ही कविता है….उसे बाल सखा मित्र प्रीती पटवर्धन जी बखूबी निभाया है हार्दिक बधाई….!

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