“मेरे पिता”
पिता एक ऐसा शब्द है। जिस पर बहुत कम लिखा गया है ।पर क्यों……. मैं यह नहीं जानती। शायद मां के प्यार का पलड़ा पिता के प्रेम के सामने भारी होता है।
मेरे पिता एक अध्यापक हैं। लेकिन मैनें उन्हें कभी खुद की मेहनत की कमाई को खुद पर खुलकर खर्च करते हुए नहीं देखा । बस हमेशा वहीं कभी बिजली का बिल , कभी पानी का, तो कभी दूध का, कभी हमारे स्कूल की फीस, कभी ड्रेस ,कभी जूते ,। किसी न किसी चीज का बिल हमेशा उनके हाथों में होता।
मैनें उनसे बहुत छोटी_ छोटी बातों और चीजों को संजोना और बांधना सीखा है।
वो बस ऐसे ही हैं जैसे कहा जाता है_ “दिया खुद के तले अंधेरा रखता है। और औरों को रोशनी देता है।”
किसी भी मुसीबत में उनकी सिखाई सीखें आंखों के सामने आ जाती हैं। और मेरा जीवन फिर से हिम्मत बांध लेता है।
पिता वह बरगद का वृक्ष है। जो खुद तो समस्त प्रकार के आंधी, तूफान, धूप ,बरसात, गर्मीसर्दी को सहन करता है। और अपने बच्चों को अपनी टहनियों के तले हर दुख, हर संकट ,हर तूफ़ान से बचाकर रखता है।
और खुद दिनभर लूं के थपेड़ों से झुलसता और जूझता रहता है ।
तारावती सैनी “नीरज”
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