कहाँ से लाती हो ।
इतना प्यार, इतना दुलार
इतना धैर्य, इतना शौर्य
सब जानने का मानस,
सब मानने का साहस,
सब के लिए सब करती हो
किसी से कुछ नहीं जताती हो
इतना सब्र
कहाँँ से लाती हो ।
अपनी ही दुनिया में खोया,
मैं भी कुछ दर्द सहता था,
तुम्हारी दुनिया को हमेशा
सहल कहता था ।
ख़ुदपरस्ती के से उथले
जज़्बात मे बहता था ।
इंसान ही तो हो ठीक
मेरी ही तरह, फिर भी
हर किरदार की एैसी
गहराई कैसै पाती हो ।
तमाम मुश्किलों मे ये
तबस्सुम
कहाँ से लाती हो ।
कमाल एैसै बस तुम्हारे
ही बस में है ।
हिम्मत, ताक़त, ईल्म औ अज़मत
बन कर नज़ाकत तुम्हारी
नस नस में है ।
लगती तो फूलों सी हो
पहाड़ों सी उम्मीदों का बोझ
कैसै उठा पाती हो ।
कभी न टूटने वाला ये हौसला
कहाँ से लाती हो ।
कभी कभी तुम मुझे
आसमानी हूर लगती हो
ज़िंदगी की तीरग़ी मे
चमकता नूर लगती हो ।
चिलचिलाती धूप मे
साया लगती हो ।
मुफ़लिसी के आलम मे
अपना सरमा़या लगती हो
है रंगीन जिन से कायनात मेरी
ये इतने सारे प्यारे रंग ‘रिषभा’
कहाँ से लाती हो ।
By अम्बर
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.