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ईद

हमने हवाओं का रुख बदल दिया है,
शुष्क हवाओं में नमी को
भर दिया है,
रमजान की अदानों के जरिए, रुहानी महक को भर दिया है,
परस्पर मोहब्बत, साझें पन का ऐहसास जारी रहे,
इबादत कर अल्लाह को इतिला कर दिया है…।।

मुशीं प्रेमचंद के किरदार याद आ रहे हैं,
सवेंदनाओं के संग चिमटे,
से प्रतीक,मुस्कुरा रहे हैं,
सुबह से शाम,चादं की इंतज़ार के कयास लगाये,
जा रहे हैं,
चादं पुर्व में निकले,या पश्चिम में पहले,अनुमान लगाये जा रहे हैं,

मन और दिल ईद मुबारक, कहने को गुदगुदा रहा है,
हर बाजार ,गली कूचा,गुलजार होता जा रहा है,
समुदायों में रोजाअफ्तार,के प्रति उत्साह बढता जा रहा है,
ईद के चादं देखने का उल्लास का मुझसे उल्लेख नहीं लिखा जा रहा है…।।

सीना खुशी से चौडा होता जा रहा है,
पाक रमजान में ईद मुबारक का क्षण नजदीक
आता जा रहा है..।।

शैलेंद्र….।।

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