””इश्क़””
तेरा साथ निभाते-निभाते,
कब तुझसे मोहब्बत हो गई।
मुर्दा से इस जिस्म में,
कब रूह इक ज़िन्दा हो गई।
सीने में तू धड़कने लगा है,
साँसों को तेरी खुशबू प्यारी हो गई।
हम तो समझे थे कि इश्क करना आता नहीं,
तेरे प्यार में ए सनम लेकिन,ख़ुद से यारी हो गई।
बस इक नज़र ने तेरी जाने क्या किया,
सर से पांव तक जाना,तेरी ख़ुमारी हो गई।
तुझसे बन्ध कर ऐ सनम,
सारे जहाँ से बेगानी हो गई।
तेरा साथ निभाते-निभाते,
कब तुझसे मोहब्बत हो गई।
बस यूँही……।
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1 Comments on “इश्क”
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