फ़ॉग के सेन्ट की खुशबू ,भी मंद पड़ गयी।
बूँदें बारिश की मिट्टी में,जब चंद पड़ गयी।।
मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू ,ने मन मोह लिया।
तन की दुर्गंध को सावन की,बूँदों ने धो दिया।।
फिर महक उठी रात,उसके ख्यालों की खुशबू से।
नींद में ही सही दिल ज़िक्र, उसका कर बैठा है फिर से ।।
ये बरसात भी तुझ सी है ,कभी यूँ ही बेहिसाब आ गई।
जो थम गई तो थम गई,जो बरस गई तो बरस गई ।।
कभी गरज-गरज कर बरस गई,कभी बिन बरसे गुजर गई।
कभी खिली-खिली सी है,कभी ग़ुम-सुम सी है ।।
ये बारिशें भी सच में तुम सी हैं…..
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