आ मुन्ना, मैं तुझे जीवन का पहला पाठ पढ़ाऊं,
सच्चाई और हकीकतों से तुझे रुबरु करवाऊं।
तेरी खातिर देखे सभी सपने लहूलुहान हैं,
तुझे सलामत घर पहुंचाने में ज़ख़्मी पांव हैं।
मत रोना अभी कि तेरे नन्हें शरीर पर गहरे ज़ख़्म हैं,
बस रखना हिम्मत कि ज्यादा दूर नहीं अब गांव है।
मां हूं, मैंने तेरी भूख का कर रखा इंतज़ाम है,
ना इसलिए अलग की तुझसे अपनी नाल है।
वो और होती हैं मां, जो देती नर्म बिछौना हैं,
मुझसे जन्मा है तू, धरती ही तेरा बिछौना है।
निराशा पर भी आशा की उम्मीद लेकर बैठी हूँ,
इस कठिन राह में अकेला नहीं है तू, मैं तेरे साथ हूं।
जल्दी है घर पहुंचने की, छाती से भींचना चाहती हूं मैं,
तुझे दूध पिलाकर, मातृत्व में भीगना चाहती हूं मैं।
बस और थोड़ी सी हिम्मत रखना, दूर नहीं अब गांव है,
क्या हुआ जो ये थोड़े से लहूलुहान मेरे पांव है।
©️सोनिया सेठी
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