काटे वन बना डाले मीनारें जो हैं नभ चूमे,
धारा कल-कल जो बहती थी,वो नदियाँ भी हैं सूखे।
ढूंढे से भी न मिलती अब शुद्ध हवा का झोंका,
धरती भी हुई बंजर ,हैं उठते धूल के गुब्बारे।।
कहीं चिलचिलाती धूप ने सबको जला डाला,
कहीं बारिश ने शहरों को आगोश में छुपा डाला।
कहाँ वो पेड़ हैं मिट्टी को कटने से थे जो रोके,
उसी का है असर दिखता,क्या से क्या बना डाला।।
वो दिन दूर नहीं जब न हवा होगी,न जल होगा,
धरती पर गर होगा तो केवल महातांडव होगा।
अभी भी वक्त है मिल बैठकर सोचें-विचारें हम,
लगाकर पेड़,पर्यावरण को अब बचाना होगा।।
आओ फिर से अपनी संस्कृति को अपनाएं हम,
हर जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों से प्यार करें हम ।
इन्हीं से ही धरा पर मानव-जीवन भी संभव है,
आओ फिर से पेड़ लगाएं ,पर्यावरण बचाएं हम।।