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हेमलता मिश्र (UBI रूह का सफर प्रतियोगिता | वरिष्ठ कविगण)

माँजी मैं जा रही हूँ। दरवाजा बंद कर दो।
कहते कहते डाॅ नीता घर से निकल कर तेज तेज चलती हुई बाहर आँगन में खडी़ं कार में बैठ गई और कार को रोड पर लाने के लिए सेट करने लगी। रिवर्स लेने की प्रक्रिया में पीछे से माँ—- मम्मी—- एक मार्मिक चीख और फिर गहरा सन्नाटा। दहल गया डाॅ नीता का हदय। गाड़ी को एक अजीब सा झटका लगा पिछले पहिए में और घबराकर डाॅ नीता ने गाड़ी रोक दी।

गाड़ी रुकने की कर्कश आवाज सुनकर पति और सासु माँ भी घबरा कर बाहर निकल आए और दोनों के मुंह से मर्म भेदी चीखें निकलने लगीं।
उन दर्दनाक चीखों को सुनने के बाद गाडी बंद करके नीचे उतरकर कार के पीछे तक पहुंचने के उस एक पल में डाॅ नीता के लिए ब्रम्हांड की गति रुक गयी मानो और पिछले पहिए का रक्तरंजित दृश्य देखकर दूसरे ही पल वह बेसुध धरती पर गिर पड़ी।
माँ के पीछे पीछे चुपचाप ना जाने कैसे बाहर आ गई तीन वर्षीय बिटिया का क्षतविक्षत शरीर पिछले पहिए में फंसा तड़प रहा था और यहां तडप रही थी डाॅ नीता की रूह उस नन्ही सी रूह तक पहुंचने के लिए। लेकिन प्राणों की गति हार गई मौत की गति के सामने और बच्ची तक पहुंच कर उसे अपनी ममता के आँचल में छुपा कर यमराज से छीन लेने की कोशिशों में हार गई नीता। एक डाक्टर मां के सामने उसकी बच्ची के प्राण पखेरू उड़ गये और रूह से रूह तक का सफर अधूरा रह गया।
पागल सी हो गई नीता। विदेह सी दिनभर ना जाने किससे बातें करती रहती। उसकी रूह तन मन की परिधि से परे अपनी नन्ही रूही की रूह तक का सफर करती रहती है और माफी मांगती रहती है उससे अपनी अनजानी लापरवाही के लिए। मनःचिकित्सालय के डाक्टर थक गए हैं उसे अपनी दुनिया में वापस लाने के प्रयास कर कर के – – – शायद उसकी रूह की मुक्ति के साथ ही पूरा होगा उस बेकसूर अपराधी ममता का अंतहीन रूहानी सफर।।

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