“जंगल में जो मंगल कर दे ,वो सुबह चाहिए ,
चेहरे पर जो ख़ुशी लादे , वो परिंदो की चहक चाहिए ,
माया के मोह ने , ख़ुशियाँ जो समेट ली है ,
पत्तों पे गिरती वो , नायाव मोतियों की बूँद चाहिए ,
भागती- दौड़ती ज़िंदगी से , परेशान है इंसान सभी ,
टर्राते वो मेंढक , नाचते मोरों का शोर चाहिए ,
शहर बसे बच्चों के माँ-बापों की उम्मीदों को ,
पत्तों से झाँकते वो सूरज की किरणे चाहिए ,
खिलते गुलाब , कमलों का सरोवर चाहिए ,
कोयल की कूक सी सुबह की भोर चाहिए ,
शहर सज कर तैयार हो गये , वन की लकड़ियों से ,
वन सब वीराने हो गए , बिन पक्षी , वृक्षों से
समय रहते ना रोका यह वन कटाक्ष ……
ढूंढ़ते रह जाएगी पीढ़ियाँ , जंगल का वो सुहाना मंगल …………….”
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