Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

सरिता तिवाडी (पारीक) (अँधेरा प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र )

अंधेरा अंधेरा अंधेरा…
सुनने में सिर्फ शब्द हैं
अन्तर्मन की दहलीज को
पार करके जज्बातों को झकझोर
देता हैं इसके आगमन का क्रन्दन…
वो निकली थी घर से शांत सवेरे
लेकर कुछ सुनहरे ख्वाब
चली अपने कर्मपथ पर
करते हुए कर्तव्यों का निर्वाह.…..
फिर देखा दफ्तर की खिड़की से
साँझ ढल रही थी
निशा -रानी दस्तक दे रही थी
घर लौटने की खुशी में
सारी थकान दूर हो गई थी…
अंधेरी सुनसान राहों से
गुजरने का एक मन में डर था तो
अपनों से मिलने की खुशी भी थी
निकली जब वो गलियारें से
जिस्मानी दरिन्दों की नजर
उस मासूम पर पड़ी थी….
वो चीखी चिल्लाई पर किसी के
अन्तकर्ण में वो चीख न पहुंची थी..
अंधेरी रात की वो मनहूस घड़ी
जब उसकी आबरू जली
काली लाश के साथ
बीच चौराहे पे पड़ी थी…..

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

One Comment on “सरिता तिवाडी (पारीक) (अँधेरा प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र )

Leave a Comment

×

Hello!

Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com

× How can I help you?