अखबार के पन्ने पलटे तो तुम्हारे शहर की फ़िज़ा महसूस हुई..
सुना है, वो गली जो बिस्मिल्लाह चौक से होकर राम मंदिर को जाती थी ..
वहां तुम लोगों ने दीवार खड़ी कर दी ..
और सुबह अज़ान की आवाज़ पूरे शहर में नहीं बल्कि कुछ इलाको तक ही सीमित रह गयी है ..
बच्चे अब रहीम चचा की दुकान पर मांझा नहीं खरीदते,
और वो मस्जिद के बगल वाली दुकान..जहाँ कभी हम इनाम निकालते थे …गिर गयी
किस्मत थी उसकी..हम बच्चो को सपने बेचता था.. एक खुशहाल दुनिया के सपने.
पर एक दुकान आज भी सलामत है वहां..वो पीपल के नीचे वाला मोची ..
सुना है नाम बदल लिया उसने ..अब लोग उसे पंडित अब्बास अली बुलाते हैं…
सुरक्षित है अब वो.. और उसका परिवार ..
आज अखबार के पन्ने पलटे तो तुम्हारे शहर की बदली हुई फ़िज़ा का एहसास हुआ…
– मैहर
Sajal Mehra
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