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संदीप कुमार।(विधा :कविता) (मानवता | प्रशंसा पत्र)

इस दौर – ए – मुफलिसी में मानवता कौन निभाता है?
कैफियत बनी शोहरत जो हर इंसान इसमें खुद ही टूट जाता है।
जमा किया था जो भी वो नाकाफी ही समझते है।
मिट्टी की है काया अपनी। इक दिन मिट्टी में ही मिल जाता है।

राहें फ़कीर की कोई कभी कहां बता पाता है।
इंसान है वो ही जो मानवता सच्चाई से अपनाता है।
खून पसरे सड़कों पर हर जगह ऐसा है आलम।
काफ़िर ही सही पर इंसान ऐसी सड़कों पर जान बचाता है।

नफरतों के इस जहां में मासूमियत में ही जान गंवाता है।
इंसान आजकल ज़हर भरे मजहब, क्षेत्र,भाषा में खो जाता है।
हैरत है क्यों ख़ुदा ने यकीन किया इन मतलबपरस्त लोगों का।
क्यों मानवता पल पल में किसी गहरे सन्नाटे में ही समा जाता हैं
©ज़िंदादिल संदीप

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