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श्वेता प्रकाश कुकरेजा । (विधा :लघुकथा) (एक पैगाम पिता के नाम | प्रशंसा पत्र)

मैंने पापा को मुस्कुराते हुए कभी नहीं देखा…हमेशा उनकी त्यौरियां चढ़ी ही रहती…शायद चार बेटियों को पालने की ज़िम्मेदारी आपका सुख चैन छीन लेती है। बैंक में क्लर्क है पापा…मामूली तनख़्वाह…पर बड़ी इज़्ज़त….ईमानदारी के मिसाल है पापा…मैं माँ से अक्सर कहती…”पापा को भगवान ने गलत युग में भेज दिया।“
हमारे घर में उत्साह, उमंग…या कहिये जीवन सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक ही रहता…क्योकि यह पापा का ऑफिस का समय था।उनके जाते ही हमारा रेडियो चालू हो जाता..हम बहने नाचते…ठिल ठिलाते…माँ भी झूम झूमकर खाना बनाती…शाम सात बजे मुझे पहरेदार बना खिड़की पर बिठाया जाता…पापा के आते ही माँ और बड़की रसोई में …औऱ हम तीनों किताबो में लीन हो जाते।
बड़की ने पढ़ाई न की सो अट्ठारह होते ही विदा कर दी गयी…मँझली भी इक्कीस में…ऋतु का प्रेम प्रसंग पता चलते ही निर्विरोध उसे ससुराल भेज दिया गया। मैंने CTET परीक्षा पास की…सारे गांव में वाह वाही हुई…पर पापा के मुँह से प्रसंशा का एक भी शब्द न फूटा।
विदाई के समय मैंने सोचा कि अब तो पापा फूट फूटकर रोयेंगे…आखिर सबसे छोटी हूँ मैं…पर यह क्या..उन्होंने मात्र मेरे सर पे हाथ फेरा औऱ दूल्हे को एक उपहार दिया…मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया…इन पच्चीस सालो में मुझे तो कुछ न दिया पापा ने।
खैर कार में बैठते ही मैंने इनसे कहा, “देखो तो क्या दिया है पापा ने।“ खोलते ही एक मोटी डायरी…ऐल्ल्ले। उपहार में भी डायरी….मैं खोलने लगी तो ये बोले,”प्रिया पापा ने मुझे दी है…मैं खोलू।“सुन मैं झेंप गयी।
पहले पेज पर मेरी बचपन की फ़ोटो…लिखा था..मेरी आँखों का तारा..मैं चोंक गयी..फिर दूसरे पेज पर कक्षा पाँचवी में टॉप करने पर विद्यालय से ईनाम लेते हुए का फ़ोटो….फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में रानी लक्ष्मीबाई बनी…निबंध लेखन में प्रथम आने पर अखबार में आये नाम की कटिंग….CTET परीक्षा की परिणाम सूची जिसमे मेरा नाम चिह्नित…
पेज पलटते जा रहे थे और मैं स्तब्ध….भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था….फिर इन्होंने पढ़ा..

“सुमित…अपने कलेजे का टुकड़ा…अपना अभिमान…अपने घर की रौनक दे रहा हूँ…ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए शायद उसे एक पिता के हिस्से का प्यार न दे पाया…इसलिए चाहता हूं कि तुम उसे असीम स्नेह देना।
गाने सुनना बड़ा भाता है उसे…खट्टा भी बहुत पसंद है..पर खाने न देना खाँसी भी जल्दी हो जाती है…बारिश में जरूर भीगने देना…।छोटी सी बात पर रोना आ जाता है उसे…रूठ भी जल्दी जाती है।
उन दिनों में बड़ा दर्द होता है उसे…काम भी नहीं कर पाती…थोड़ा ध्यान देना। पता नहीं संकोचवश कुछ बताये या नहीं…तभी तुम्हे बता रहा हूं।बेटी देकर एक बेटे की उम्मीद रखी है मैंने….गलत तो नहीं सोचा न।
तुम दोनों के लिए बस प्यार और आशीर्वाद ही है मेरे पास देने को।“
मेरे आँसू बह रहे थे…निर्झर….अनवरत….और इन्होंने भी ड्राइवर से कह गाड़ी घर की तरफ मुड़वा दी।

©श्वेता प्रकाश कुकरेजा

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