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श्वेता प्रकाश कुकरेजा। (विधा : लघुकथा) (आकाशगंगा | सम्मान पत्र)

“बेटा, तुम्हारे पापा।“ विशाल के साथ खड़ी रीमा बोली
“माँ, ये आपके पति हो सकते है,पर मेरे पापा कभी नहीं..मैंने पहले ही कहा था मुझे एक पिता की ज़रूरत नहीं है ।“पैर पटकती सुचि चली गई।
मायूस रीमा के आंसू निकल पड़े,” मैंने कहा था न विशाल वो नहीं मानेगी।“
“उसे थोड़ा समय दो रीमा,अब बच्ची नही है वो।“हाथ थामते हुए विशाल बोला।

चार साल की थी सुचि जब उसने अपने पिता को खो दिया,ऐसी स्तिथि में रीमा ने सब संभाला ।आज 12 साल बाद उसने विशाल का हाथ थामा…जो कब से उसका साथी बना हुआ था।
“ एक हफ्ते के लिए तुम दोनों के बिना रहना..मुझसे न होगा” चिन्तित रीमा बोली “तुम उसे जानते नही हो..”
“हाँ सो तो है, पर उंसके फेसबुक और इंस्टाग्राम प्रोफाइल से काफी कुछ जान रहा हूँ अपनी बिटिया के बारे में,तुम फिक्र न करो … मैं सब सम्भाल लूँगा।“ बैग पैक कर दोनों स्टेशन चले गए।

“सुचि बेटा, यह कुछ एस्ट्रोफिजिक्स की किताबें है…मेरे किसी काम की नहीं..तुम देखो एक बार”
“आप बस दूर रहिये,और ले जाइए ये सब….”सुचि चिल्लाई, विशाल बिना किताबें लिए चला गया।

उसके जाते ही सुचि ने किताबे देखी,”हिंदी के प्रोफ़ेसर के पास एस्ट्रो फिजिक्स….ओह्ह ये तो मुझे पढ़नी थी।“ किताब ले अपनी कुर्सी पर जम गई।
सुबह विशाल ने बात करनी चाही पर सुचि ने अपनी आस पास की दीवार में दरार भी न आने दी।
“सुचि बेटा ये आकाशगंगा क्या है?एक लेक्चर तैयार करना था, मदद करोगी।“
“ऐसे समय में गूगल काम आता है।“ बिना पलटे वो बोली।
“शायद सही कह रही हो, लगता है फालतू ही मैं ये टेलिस्कोप ले आया….मुझे तो..”
“क्या…टेलिस्कोप?…सच में आप लाये है” बात काटते हुए वह उछली।
दोनों छत पर पहुँचे और देर तक तारे देखते रहे।
“आईये आपको आकाशगंगा का सबसे चमकीला तारा दिखाती हूं।“सुचि टेलिस्कोप में झाँकती हुई बोली।
“पर वह तो मेरे पास है, कब से…उस आसमान के पास अब कुछ नही ”उंसके सर पर हाथ फेरते हुए विशाल बोला।
“थैंक यू…..”गले लगते हुए सुचि बोली..”थैंक यू पापा”
“धन्यवाद …आकाशगंगा…मुझे मेरी बिटिया देने के लिए” आसमान की ओर देखते हुए विशाल बोला।

©श्वेता प्रकाश कुकरेजा

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