सपनें तो उड़ते हैं,सपने भी उड़ाते हैं।
सपनें भी जुड़ते हैं,सपनें भी जुड़ाते हैं।
सपनें तो बस सिर्फ़ अपने ही होते हैं।
ना कोई दूसरे को दिखा भी सकते हैं।
सपनें हम बुनते हैं,सपनें भी अपने से बनते हैं।
सपनें भी खुद के खुद कभी पनपते हैं।
सपनों की उड़ान सब शृंखल से परे।
बिखरते सपनों को समेटे हम घुम फिरें।
जीन्देगी जीते हैं सपनों से,जीतते भी हम।
सपनों की उड़ान में है इतना जो दम।
सपनों के पिछे हमारे हर कदम।
सुलगा देता है निराश जीन्देगी की बुझी हुई आग।
जीन्देगी में दम भर कर बताता है ,तू आगे और तेज भाग’।
सपनों का उड़ान को भी उर्जा चाहिए,
हो ना हो उसके पहिए।
पहनाना पड़ेगा उसे ईगल के दमदार पंख।
तब बजेगी विजय की पांचजन्य जयनाद शंख।
सपनों को संजोए,पंख पहनाये, उर्जा से भरकर फिर भूल जाये।
कहां से कहां तक यह भरेगी उड़ान।
बनेगी जिन्दगी,बन जायेगा एक सफल जीवन।
सपनों की उड़ान अपने हाथों और अपनी अपनी नसीबों से।
सफलता हंसेगी फिर बड़े ही करीबों से।
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