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शशि कांत श्रीवास्तव । (विधा : कविता) (ग्रहण | प्रशंसा पत्र)

ग्रहण -चक्र है खगोलीय प्राकृतिक घटना का
जो होता है पूर्ण अपने नियत समय पर
सूर्य का ग्रहण हुआ –आज
चहुँ और साम्राज्य हुआ अँधेरे का
कुछ पल के लिए
नीले व्योम में…,
तभी ,
फैलती है एकअप्रतिम सुनहरी सीआभा
नभ मंडल में —
चमकता है, तेज प्रकाश हीरे की मानिंद
जो कि -शनैः शनैः खत्म करता है
ग्रहण की छाई हुई कालिमा को
और -मुक्त कराता है दिनकर को
ग्रहण से..,
छा जाता है -उम्मीदों का प्रकाश
व्योम में…,
ग्रहण-चक्र है खगोलीय प्राकृतिक घटना का
जो की होता है पूर्ण अपने नियत समय पर ||

शशि कांत श्रीवास्तव

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