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ललिता वैतीश्वरन। (विधा : कविता) (दर्द की दास्तान | प्रशंसा पत्र)

ये दर्द की दास्तान है
हर शख्स परेशान है

भीड़ से रौंदा गया वह पुलिस कर्मी
ज़ख्मी है लहुलुहान है

घर से दूर है
बेबस मजदूर है
शहर नया अंजान है

चिकित्सक करता देखभाल
मरीज़ होते गुस्से से लाल
ना समझें जान है तो जहान है

वृद्ध माता पिता बीमार हैं
बेटा सात समुन्दर पार है
कोई नहीं जो करे समाधान है

इधर नौकरी गयी सब भूखे हैं
कर्ज़ सर पर है खेत सूखे हैं
खतरे में पड़ी सबकी जान है

आदमी को आदमी से लग रहा ड़र
बाहर हवा में जैसे घुल गया ज़हर
ये जीवन अब लगता नहीं आसान है

जीवन में आशा की किरण जलाये चल
बुरा वक्त न ठहरेगा जायेगा बदल
कल सुनहरा होगा ….वक्त बड़ा बलवान है !

©️ललिता वैतीश्वरन

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