झिर-२ झरती सावन की झड़ी,
अपलक निहारती मैं खिड़की पे खड़ी,
सुंदर बूँदों की अनमोल ये लड़ी,
साक्षात बरखा रानी सामने है खड़ी,
बरसों पहले की बारिश की वो शाम,
कॉफ़ी हाउस मेंचाय,पकौड़ी कॉफ़ी के वो जाम,
अनायास ही गीली करते आँखों
की कोर,
दिल माँगता है वन्स मोर,
ज़ोर की गरज के साथ बिजली
तड़पी है,
मोटी-२ बूँदों से धरती सहमी है,
डर के मारे सिमट गई वो बाँहों में,
राम करे ऐसी बरखा रोज़ आए
राहों में,
सावन में प्रकृति ने किया है सिंगार,
लहराती आयी है धानी चूनर की बयार,
झूलों,हिंडोलों पर गीतों की बहार,
पेंगें मारे सखियों की हुलार,
जंगल में मंगल मना रहा है मोर,
बस्ती की गलियों में बच्चे मचा रहे शोर,
वन में बीर-बहूटी,जुगनू का श्रृंगार,
दादुर,मोर,पपीहा करे पुकार,
खेतों में किसान के हल बैलों की हाँक,
रसीले जामुन, गुदाज़ आमों की
फाँक,
नये फूटते अंकुरों की आँखमिचौली,
दोस्त-अहबाबों,सखी-सहेलियों की हँसी ठिठोली,
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