मानवता परमो धर्म:
इस धरती पर मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं- यदि हम यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।मान्यताओं के अनुसार
हमें मानव योनि जन्म बहुत मुश्किल से प्राप्त होता है।यदि हमें अपने मनुष्य जीवन को सफ़ल बनाना तो पूरे यत्न के साथ मानव-धर्म निभाना पड़ेगा। मानवता का मतलब अपने साथी
जीवों के प्रति दया भाव रखना, सहानुभूति रखना,ज़रूरत के समय उनकी सहायता करना है । मनुष्यों के साथ-२ पशु- पक्षियों के प्रति दया भाव रखना भी मानवता का ही गुण है।
एक सच्चा मानव बनने के लिये हमें बहुत धार्मिक,सामाजिक
(social)या धन कुबेर होने की ज़रूरत नहीं है।ज़रूरत है तो केवल एक सच्चे जज़्बे, जुनून और लगन की।यदि आप अकेले भी इस कठिन मार्ग पर पैर बढ़ायेंगे तो यक़ीनन लोग
ख़ुद-ब-ख़ुद इस नेक काम में आपके साथ जुड़ जायेंगे।
मेरी मानिये इसकी शुरुआत(Charity begins at home)I
अपने घर व आस-पड़ोस से करिये। देश-दुनिया,समाज सब बाद में आते हैं।घर के बड़े बुज़ुर्गों के साथ थोड़ा समय बितायें
पास पड़ोस के लोगों से मिलें, उनका हाल जानें।अगर आप उनकी रोज़ की ज़िंदगी की समस्या का हल दे सकें तो ज़रूर दीजिये। बच्चों व बड़ों के आपसी छोटे मोटे झगड़ों का बातचीत द्वारा हल निकालने की पहल करें ।
किसी अंधे लाचार आदमी की सड़क पार करने में मदद करें।
भीख बेशक मत दें,पर किसी भूखे को खाना खिला दें, किसी
प्यासे को पानी पिला दें।हज़ारों- लाखों रुपये दान में न भी दे सकें परंतु वक़्त पर किसी ज़रूरतमंद की कम पैसों से सहायता कर सकें तो अवश्य करें। किसी घायल को अस्पताल पहुँचा दें। शरारती असामाजिक तत्वों से निपटने, बच्चों एवं महिलाओं की सुरक्षा मेंपुलिस व प्रशासन की मदद
करें।
सारे संसार में अनेक ऐसे महान लोग हुये हैं जिन्होंने मनुष्य जाति की भलाई के लिये अपना पूरा जीवन निछावर कर दिया। गाँधीजी, मदर टेरेसा,बाबा आम्टे,कैलाश सत्यार्थी कुछ ऐसे ही नाम हैं।संसार में मानवता ही एकमात्र धर्म हो यही मेरी कामना है-
परहित सरिस धर्म नहीं भाई परपीड़ा सम नहिं अधमाई
@रीता बधवार
(मौलिक)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
15.3.2020
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