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रीता बधवार।(विधा :कविता) (मानवता | प्रशंसा पत्र)

मानुष जीवन नहीं मिलता है हमको बारम्बार
सच्चा मानव बन कर क्यों न दें हम प्रभु का ऋण उतार
बड़ा ही सरल है मानव धर्म निभाना
किसी प्यासे को पानी और भूखे को दो कौर खिलाना

आज़ ज़माने को है मानवता की दरकार
‘कोरोना’ वायरस खड़ा हुआ है अपनी बाँह पसार
हाथ जोड़ कर तुम दो इसको दुत्कार
साफ़ सफा़ई रखकर लगाओ कड़ी फटकार

प्यार, सौहार्द ,दया,सहानुभूति
इनका है हम पर उपकार
ये चारों न हों मन में गर
तो मानव जीवन है बेकार

@रीता बधवार
(मौलिक)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
16.3.2020.

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