डब डबाई आँखें,
सहम,सहम गयी,
इस जहाँ से जब रूखसत हुए हम,
तेरी महफिल से,
सारी कायनात,खामोश थी,
आहटे और जज्बात ठहरे हुए,
दिलों मे मातम था छाया हुआ,
हर शख्स था खामोश,
वक्त था ठहरा हुआ,
सभी गमगीन थे ,
पर सुकून मे थी रूह,
जो निकल रही थी ,एक नये सफर,
एक नयी मंजिल की तलाश मे,,,,,,,,,,,
न कोई रहगुज़र,,,,, न कोई रहनुमा,,,,,,,,, बस,,,,,,,,
दूर तक धुआं ही धुआ ,,,,,,
तनहाई और रोशनी,,,,,,
थी खूबसूरत जमीं,,,,,,,,,,
इश्क मे खुदा के मगरूर थे,,,,,,,,,,,
और जमाने की तकलीफो,,,,,,,,,,,
से बहुत दूर थे,,,,,,,,,,
रूह थी खुदा की आगोश, मे,,,,,,,,,,,,
बरस रही थी रहमतों की बरसात,,,,,,,,,,,
और भीग रही थी रूह,,,,,,,,,
हो रही थी तैयार,,,,,,,,
एक नये सफर के लिये,,,,
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