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मनप्रीत सरला।(विधा : कविता) (साथी हाथ बढ़ाना | सम्मान-पत्र)

साहस और संयम का , आ चल फिर से इतिहास दोहराएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ
दीए की इक लौ से, आ चल जग का आँगन चमकाएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ
उदासी के बहते दरिए में, आ आशाओं का कमल खिलाएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ
सूझ -बूझ और धीरज से, कर्मवीरों का हौसला बढ़ाएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ
साँझा करें खुशियाँ अपनी सबसे, सबका दुख-दर्द अपनाएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ
तोड़ ना पाएँ जिस इमारत को कोई कोरोना, आ इक ऐसी दीवार बनाएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ
रहे गवाह जिसका इतिहास हमेशा, आ इक ऐसी सदी लिख जाएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ
संतो और वीरों की भूमि का बखान करें ये दुनिया, आ कुछ ऐसा कर जाएँ,
होता क्या है हाथ बढ़ाना साथी, आ चल दुनिया को दिखलाएँ

~ मनप्रीत (बोस्की)

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