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भावना शर्मा । (विधा : लघु कथा) (धोखा | प्रशंसा पत्र)

‘मां फीस के रुपये दे दो’ मेघा ने कहा तो रीमा ने कहा ,दराज में से ले ले। रीमा ने पति की अकाल मृत्यु के बाद इकलौती संतान मेघा को बड़े प्यार से बड़ा किया है। मेघा पर आंख बंद कर भरोसा करती है रीमा।मेघा रुपये लेकर सीधा चन्दन के पास गयी।रुपये देख कर चन्दन मुस्कुरा उठापर फिर अनमना होकर बोला’मेघा तुझसे हरबार रुपये लेना मुझे अच्छा नहीं लगता है,पर क्या करुं? घर की स्थिति ठीक होती ना तो बात ही कुछ और होती।’ सुनकर मेघा नाराजगी से बोली ‘ये तेरा मेरा क्या है,तू मेरा है तो रुपये तेरे भी तो हैं।मान ले मेरी मां अपनी बेटी के साथ दामाद को भी पढ़ा रही है।’ कहकर दोनो खिलखिलाकर हँस दिये।अपनी मां को धोखा देने का बिल्कुल भी मलाल नहीं था मेघा को।उसे तो चिंता थी कि वह अपनी और चंदन की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिये कोचिंग फीस का इन्तजाम कैसे करे।माँ की तबीयत दो महीने से खराब थी बहुत पैसा खर्च हो गया । चन्दन को उसने ये कहा तो वह उठ कर चला गया,अगले तीन.दिन उससे बात भी नहीं की। मेघा को बड़ा बुरा लगा कि उसने चन्दन को दुखी कर दिया।आखिर उसने निर्णय ले लिया ।उसने रुपये ले जाकर चन्दन को दे दिये।’लो कोचिंग फीस’ तो चन्दन की आंखें चमक उठी।उसने पूछा कैसे इन्तजाम किया तो मेघा ने कहा इतने ही रुपये हैं कि हम दोनो मे से एक की ही फीस दे सकते हैं तो तुम्हारी दे देते हैं।तुम्हारी नौकरी लग जाएगी तो तुम मुझे पढ़ा देना।चन्दन थोड़ी नानुकुर के बाद मान गया।अब दोनो का मिलना कम हो गया,चन्दन कोचिंग जाता ,मेघा वह समय अपनी सहेली के घर बिता कर घर चली जाती।
दिन बीतते गये ,इम्तिहान हुए और आज नतीजा भी आ गया।नतीजा अनुमान के मुताबिक ही आया।चन्दन उतीर्ण और मेघा अनुत्तीर्ण।पर मेघा खुश थी।वह अच्छे से तैयार होकर चन्दन से मिलने उसके किराए पर लिए कमरे पर ही चली आयी थी,पर वहां चन्दन था ही नहीं।मेघा को चन्दन के साथ रह रहा उसका दोस्त ही मिला।उसने बताया चन्दन भाभी को लेने गांव गया है।’किसकी भाभी?’ मेघा ने पूछा, तो उसका दोस्त हंसकर बोला’मेरी भाभी, चन्दन की पत्नी और कौन?’मेघा मानो आसमान से गिर पड़ी,आगे उसने क्या क्या कहा उसे कुछ सुनायी नहीं दिया। उसे समझ आ गया था अपनो को धोखा देकर खुद की खुशियों की दुनिया नहीं बसाई जा सकती।
भावना शर्मा
स्वरचित

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