मोटी-मोटी बूंदों की मचलती बारिश;
जैसे बुन रही हो कोइ साज़िश;
कर रही हैं देखो फूलों को विभोर;
और कह रही हैं “जल्द ही आएगा तेरा चित-चोर”..
सावन की ये रिमझिम बौछारें;
रह रह कर करती है शरारती इशारे;
छेड़ती है तड़पते दिल के तार;
और कहती है “आ रे – आ रे – आ रे..”
मुझसे पल पल करती है खिलवाड़;
कहती है भीग जा आकर मुझमें एक बार;
तन मन तेरा उज्ज्वल होगा;
कर ले तू अपनी चाहत को स्वीकार..
चाहत को मै अपना बना लू;
ख्वाबों को भी मै सीढ़ी चढ़ा दू;
आसमां में घिरे घने बादलों को;
उड़कर मै सीने से लगा लू..
चंदा के माथे पर सिन्दूर लगाना है;
सितारों के पैरों में भी पाजेब पहनाना है;
इजाज़त जो दे मुझको परवरदिगार;
तो सूरज को भी तो ठंडक पोहचाना है..
“सोच की खनक में अरमानों की डोली;
इश्क़ की बरसात में अब मै खेलूंगी ‘ होली ‘..”
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