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पूनम संधू (UBI सावन की पुकार प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र)

मोटी-मोटी बूंदों की मचलती बारिश;

जैसे बुन रही हो कोइ साज़िश;

कर रही हैं देखो फूलों को विभोर;

और कह रही हैं “जल्द ही आएगा तेरा चित-चोर”..

 

सावन की ये रिमझिम बौछारें;

रह रह कर करती है शरारती इशारे;

छेड़ती है तड़पते दिल के तार;

और कहती है “आ रे – आ रे – आ रे..”

 

मुझसे पल पल करती है खिलवाड़;

कहती है भीग जा आकर मुझमें एक बार;

तन मन तेरा उज्ज्वल होगा;

कर ले तू अपनी चाहत को स्वीकार..

 

चाहत को मै अपना बना लू;

ख्वाबों को भी मै सीढ़ी चढ़ा दू;

आसमां में घिरे घने बादलों को;

उड़कर मै सीने से लगा लू..

 

चंदा के माथे पर सिन्दूर लगाना है;

सितारों के पैरों में भी पाजेब पहनाना है;

इजाज़त जो दे मुझको परवरदिगार;

तो सूरज को भी तो ठंडक पोहचाना है..

 

“सोच की खनक में अरमानों की डोली;

इश्क़ की बरसात में अब मै खेलूंगी ‘ होली ‘..” 

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