तुम आने वाले कल पर क्यूँ उम्मीद लगाते हो
वक्त को अपने हिसाब से क्यूँ आज़माते हो
छोड़ कर इच्छाशक्ति के प्रबल शस्त्र को
अपने सामर्थ्य को अपने अंदर क्यूँ छुपाते हो
वक्त की क़दर करना तुम सीखो ज़रा
आज के अनमोल पलों को यूँ खोने ना दो
छोड़ कर आलस और विलंब की हर वजह
काम को कल पर टालने की कोशिश ना करो
हर एक पल सीप में छुपा बहुमूल्य मोती है
इस बात का इल्म अगर इंसान को हो जाए
तो मुकम्मल कर ले वो हर अधूरे ख़्वाब अपने
समय पर पाबंदी और पहरा बिन लगाए
कल के भरोसे पर बैठ कर अक्सर
हाथ आए निर्मूल्य मौक़े छूट जाते है
“काश” के गुमनाम अंधेरों में खो कर
अपनी मूढ़ता पर फिर वो खूब पछताते हैं
भुला कर गुज़री हुई गफ़लतें अपनी
तुम हर लम्हे को आज अपनी गिरफ़्त में कर लो
समय को बना कर वो असीम आसमान
इसी पल तुम एक नई उड़ान भर लो
पूरे होंगे तभी सब ख़्वाब तुम्हारे
चाहे राह में मुश्किलें बेशुमार आएँगी
कर्मठ होने का फल मिलेगा तभी तुम को
और मंज़िल भी तुम्हें तभी नज़र आएगी
निशा टंडन
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One Comment on “निशा टंडन। (विधा : कविता) (काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | सम्मान पत्र)”
So encouraging