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डॉ नीता जाधव (UBI भीगी पलकें प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र )

बंद रही पलकें उसकी
बहते रहे फिर आँसू उसके. .
थामा दामन फिर उड़ गया
टूट गये सारे सपने उसके . . .

अब जो टूटी तो फिर ना जुड़ेगी . . .
बंद पलकें उसकी कभी ना
खुलेंगी . . .
दूर क्षितिज तक किनारा नहीं
कोई उसका सहारा नहीं
सिमट गयी उसकी दुनियाँ
कहीं . . .
बिखर गयी सारी कल्पनाएँ
कहीं . . .

आज भी हैं प्रतीक्षा किसी की
आज भी हैं इंतजार किसी का
वो ना हुआ अपना तो क्या
आज भी हैं करार उसी का. . .

सहारे यादों के बस बाकी हैं
घरोन्दे यादों के सहारे टिके हैं
सोचा ना इतना भी जरा
हम जिनके लिये मिटे थे . . .

क्या वो हमारे हो सकें हैं ??
क्या वो हमारे हो सकें हैं ? ?

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