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डा. अपर्णा प्रधान । (विधा : गीत ) (जीवन – आनंद | प्रशंसा पत्र )

परदेस की ये हवाएँ

 

ये हवाएँ जो आईं हैं छू कर तुझे

सुन रही हूँ मैं इन में धड़कने तेरी

तेरी साँसों की ख़ुशबू समेटे हुए

मदहोश कर रही हैं ये सांसें मेरी

जीवन आनंद महसूस करा रहीं है मुझे

 

ज़रूरत ही नहीं इत्र की अब मुझे

तरबतर हो गई हूँ मैं महक से तेरी

मचा गई हैं ये हलचल दिल में मेरे

बसा गई हैं ये तुझे धड़कनों में मेरी

जीवन आनंद महसूस……………..

 

तेरे आने की खबर जब से लाईं हैं

इंतेज़ार में तेरे थम रही हैं साँसे मेरी

मूँद कर आँखे महसूस हो रही हैं

क़रीब आती कदमों की आहटें तेरी

जीवन आनंद महसूस……………..

 

स्पर्श बालों का, जब हवाओं ने किया

बहुत जाना पहचान सा रिश्ता लगा

यूँ लगा प्यार से छू गईं उँगलियाँ तेरी

बेताब हूँ मैं बाहों में सिमटने को तेरी

जीवन आनंद महसूस……………..

डा॰ अपर्णा प्रधान

स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

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