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चन्द्र प्रकाश अवस्थी (UBI भीगी पलकें प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र )

घर की दहलीज पर कुर्सी पर बैठे हुए देखा उसे,बस एकटक देखता ही रह गया!!
बरसों बाद देखा उसे बदले रूप में सपाट चेहरा सूनी ललाट होंठों पर चुप्पी!!
बैठ गया सामने उसके देखता रहा बस कुछ बोल ना सका बोलता क्या बोल निकल ही नहीं रहे थे मुँह से!!
देखते देखते ही कब खो गया यादों में कुछ पता ही नहीं चला!!
कि अचानक कुछ महसूस हुआ अपने गालों पर बूँदे उभर आई थी आँसूओं की झिझक कर खोली आँखें पाया मैने अपनी भीगी पलकों को!!
छुपाकर उससे पोंछ डाला उँगली से आँसूओं को नजरें टकराई एक दूजे से ना जाने कैसे पढ लिया उसने मेरी आँखों में उस प्यार को जो आज भी कायम था!!
बस कुछ मैने कहा कुछ उसने अपनी कही इधर उधर की बातें हुई!!
मैं तो अकेला था ही उसे भी कचोटने लगा था अकेलापन शायद अब ,रहा नहीं गया और हाथ बढा दिया मेरी तरफ !!
थामने को तैयार था मैं आज भी हूँ कि कुछ उसूल कुछ सामाजिकता कुछ रिश्ते आड़ बन कर खडे हो गये!!
बस बातें हो जाती है दूर बहुत दूर बैठे बैठे फोन पर कभी-कभार !!
क्या मेरे नसीब में प्यार है ही नहीं साथ है ही नहीं ,क्या कसूर है उसका कि बाँध रखा है उसे क्युं अधिकार नहीं है उसे अपनी मर्जी के मुताबिक खुशी से जीने का !!
बस यही सोचते सोचते भीग जाती है “पलकें” मेरी जब भी अकेले में बैठे याद करता हूँ!!
“”भीगी पलकों “”के सहारे जिन्दगी आगे बढती जा रही है उम्मीदों की आशाएं लिए कि शायद इक दिन ऐसा आयेगा सारी खुशियां दोनों की झोली में डाल जायेगा!!
“”कानू -जानू”” की मोहब्बत का किस्सा पैगाम दे जायेगा-उम्र दराज लोगों की दुनिया में नये प्रचलन का दस्तूर बन याद रखा जायेगा!!

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