धरती माँ
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कैसे गुणगान करूँ मैं तेरी हे धरती माँ,
शत-शत नमन करूँ तुझे हे धरती माँ ।
बच्चों की खातिर सीने में कुदाल सहे,
बदले में हमको अन्न का भंडार दिये ।
तेरा अन्न-पानी खाकर हम पले – बढ़े,
ऋण तेरा बहुत, कैसे चुकाऊँ हे धरती माँ।
शत-शत नमन करूँ तुझे हे धरती माँ ।।
तेरे आँचल में पनपे हैं जो वृक्ष कई,
वृक्षों की छाव में रहते हैं जीव कई।
स्वार्थी बन काट रहा मानव वन को,
कटने से कैसे रोकूँ,बता हे धरती माँ।
शत-शत नमन करूँ तुझे हे धरती माँ।।
दरियाओं के पानी को भी दूषित कर,
कूड़ा-करकट धरा पर फेंक प्रदूषित कर।
अपने हाथों अपना ही पतन हैं करते,
विकास-गाथा कैसे लिखूँ हे धरती माँ।
शत-शत नमन करूँ तुझे हे धरती माँ।।
सब कुछ सह कर मुख से कुछ न तू बोले,
अपने बच्चों की खातिर हर दुःख तू झेले।
सहनशक्ति और करुणा की तू परिचायक,
देव भी तुझपर नतमस्तक हैं धरती माँ।
शत-शत नमन करूँ तुझे हे धरती माँ।।
सर्वाधिकार सुरक्षित@कृष्णा बुडाकोटी
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