आज भी है कल भी होगा
‘समय’ है, वो प्रतिपल में होगा
धरती क्या आकाश क्या
वो तो जल और थल में भी होगा
ना कोई रूप उसका
ना तो कोई रंग है
सर्वव्यापी अनदेखा वो
हर प्राणी के संग है
ना तो कोई आदि उसका
ना तो कोई अंत है
ना कोई छोर उसका
ना कोई प्रतिबन्ध है
मिलता समर्पण त्याग से
पल पल के हिसाब से
मिल सकता हरेक को वो
काल के वैराग्य से
वो हाथ मलता रह जाएगा
जब पहचान ना पाया कोई उसको
वो भटकता रह जाएगा
जब मान ना पाया कोई उसको
कहत कविराय ‘अश्विनी’
थोड़ा ठहरो कुछ विचार करो
समय से बढ़कर ना साथी कोई
ना तुम इसको बर्बाद करो
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One Comment on “अश्विनी राय ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )”
समय के लिए बहुत ही सुन्दर और उम्दा रचना प्रेषित किया गया है, मुहावरा हे कि “समय समय बलवान” याने कि समय की वैल्यू हे, जिसका समय अच्छा है उसे अपना क़ीमती समय को सम्हालना चाहिए, कवि ने बताया हे कि समय आकाश और पाताल तथा धरती पर हे लेकिन उसका कोई रूप रंग नहीं है, उसे देख नहीं सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, कवि को एसी उम्दा रचना के लिए हार्दिक बधाई देते हैं
डॉ गुलाब चंद पटेल, कवि लेखक अनुवादक