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अरुणा शर्मा। (UBI पर्यावरण दिवस प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र)

झुलस रही है धरती अपनी।

अम्बर ने आग उगलने की ठानी।

इसका,उसका नहीं अकेले।

हम सबने मिलकर,किये ये झमेले।

आई दौड़ी-दौड़ी मुन्नी।

देखो माँ!!भीग गई मेरी चुन्नी।

बटन दबाकर एसी का।

कर दिया उसने कमर बन्द

गर्मी से बिटिया झुलसाई।

माँ ने फ़्रीज की ठंडक बढ़ाई।

ठंडा पानी और आइसक्रीम।

बिटिया के लिए वो लेकर आई।

टीवी चलाकर,माँ-बेटी ने। बतियाना था,शुरू किया।

देख पिघलती बर्फ़ पहाड़ों की।

ग्लोबल वार्मिंग का शोर किया।

एसी की ठंडक में दोनों।

चार घण्टे तक बतियाई।

पर्यावरण बचाने की भाषण बाजी कर आई।

शाम को आकर कमरे से बाहर।

कार को अपनी नहलाकर।

पाप-मम्मी और भैया संग।

लेने चली मुन्नी,प्रकृति का आनन्द।

देख बीमार एक बच्चा, झुग्गी का।

मुन्नी का दिल,बहुत पसीजा।

ना बिजली और ना था पानी।

सारी बस्ती की थी,यही कहानी।

मम्मी-पापा और भैया को।

मुन्नी ने सुना दिया अब निर्णय।

एसी अपने घर ना चलेगा।

ना ही कार को, कोई नहलायेगा।

आसपास में पेड़ लगाकर।

करेंगे हम पर्यावरण की रक्षा।

पानी,बिजली बचाकर हम।

निभाएंगे अपना सच्चा धर्म।

बात समझ में सबके आई।

एसी की हुई,हर कमरे से विदाई।

पानी मिले अब हर मानव को।

हर झोंपड़ी में रोशनी भी हुई।

समय नहीं ठहरेगा बन्दों।

अब तो अपने मन की सुन लो।

त्याग के छोटे-छोटे स्वार्थ।

पर्यावरण को अब तो सुख दो।

 

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