तोतली,चंचल, रंगोली
इक उम्र जो नाज़ुक भोली
बस करती हँसी ठिठोली
बच्चाें की मीठी बोली
प्रीत का पहला सावन
वो प्रेम पत्र मनभावन
अनजान भावना पावन
रातों का प्रथम बुलावन
जीवन का प्रथम समर्पण
सब कुछ कर देते अर्पण
अभिगामित स्वर का दर्पण
अरु गृहस्थता में तर्पण
श्रृंगार साज्य को छोड़ा
तुमने तो खुद को तोड़ा
भाषा को अधिक मरोड़ा
क्यों जीवन भाषण मोड़ा
सबही मृत हो जाते हैं
भाषा जो अपनाते हैं
वो सिरे नए लाते हैं
बस मोक्ष वही पाते हैं
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