* पर्यावरण का संरक्षण *
ओढ़ा कर हरा-भरा सा आवरण,
भेजा प्रभु ने धरा को पावन।
फिर आए यहां पशु, पक्षी, नर,
इसपर रहने को मिल जुलकर।
ओज चमकता यहां सूरज का,
और शशि का शीतल पहरा।
सागर भिगोते इसका अंचरा,
बादल सुंदर श्यामल कजरा।
पेड़ों ने दी शीतल छाया,
ऊंचे पहाड़ों का सरमाया।
खुशबू फैली सुंदर फूलों की,
बहुतायत देखो फलों की।
एक कमी रह गई थी लेकिन,
भोग रहे जिसका अब हम फल।
दिया नहीं मनुष्य को उसने सब्र,
खोद रहा अब वह अपनी ही जड़।
भौतिकता और विकास के चलते,
हो गए हम लालच में अंधे।
कर दिया मैला, धरा का आंचल,
और छिन्न भिन्न सारा पर्यावरण।
बार बार धरा देती है संकेत,
हो जाओ अब भी सचेत।
कर लो अब भी तुम कुछ संचित,
हर सुख से वर्ना हो जाओगे वंचित।