*रूह का सफर*
ना जाने कितनी बार,
शायद कई बार,
लिया जन्म तुझसे मिलन को,
हर बार।
जाने कैसा प्रेम उन्माद है,
ना और कुछ फिर याद है।
एक तू और मैं आबाद हैं,
बाकि सब अवसाद है।
तेरी मेरी कहानी,
कुछ सदियों सी पुरानी,
नदियों सी रवानी,
लिए कहानी ये रूहानी।
अपना वजूद भूलकर जब,
मैं तुझसे आ मिली अब,
जाने हो गया शुरू कब,
फिर रूहों का सफर तब।
हो जाऊँ तुझमें लीन यों,
होता सीप में मोती ज्यों।
खत्म हो फिर जिस्मानी सफर,
रह जाए बस, रूह का सफर।
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